गुलदस्ता - 9

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                ५० तालाब में सफेद बतख विहार कर रहे थे उपर से कौवा देखकर सोच रहा था ना मैं विहार करता हूं ,ना मैं सफेद हूं तालाब से बतख कौवे को देखकर सोच रहे थे ,उसके जैसे ना मैं नीले आसमान में उड सकता हूं ना पेड पर चढकर उँचाई पर से दुनिया देख सकता हूँ   .......... जंगल की असीम शांती का अपना एक नाद होता है कलकल बहती नदी की धारा में सुरील संगीत का भास होता है .......... फिनिक्स पंछी जैसा रक्षा में से उडान भरने का क्षण खुषी से