गुलदस्ता - 8

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        ४२ आँगन में रेखिक रंगोली अपने सफेद रंग में उंगलियों से उतरती जाती है तब कलात्मक रेखाँए, बिंदु, महिरप उसकी अस्तित्वता से सजती जाती है उसके रंग, रूप, रेषा, जितने भगवान के पास ले जाते है उतना ही रंगोली का शुभ्रत्व, सांकेतिकता भगवान के पास ले जाता है ...........................             ४३ गुलमोहर के वृक्ष पर बैठा एक पंछी विविधता से कलरव कर रहा था, उसमें कोई माँग नही थी, कोई अर्जी नही थी वो केवल अपने अतीव आनंद में मग्न था उसे जग की भी चेतना नही थी, केवल अपने आनंद