मां का सपना

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गांव गांव से आए ही पटना मे कहता हु की आना जाना छोड़ चूके पर्वो से नाता छोड़ चुके रख कर पत्थर अपने सीने पर घर से नाता तोड चुके किसका दिल करता करता है यारो घरका सुख चैन गवाने को ,फिर भी हम घर छोड़ आए जीवन सफल बनाने को नैन में मां के बचता सपना में अब काबिल बन जाऊ करकर चिंता बूढ़ी हो गई कभी तो उसे खुशी दिखलाऊं, बाप से मेरे चला न जाता फिर भी काम को जाता है मेरा खर्चा भिजवानेको रोज कमाकर लाता हे ,छत वो घर की टपक रही है जिसके नीचे