मेरे अल्फाज़

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1] प्रकृति प्रकृति को ख़रीद ने चला हे इंसान,जिसकी गोद में बड़ा हुवा उसीका भूल के अहेसान.कुदरत की दी गई चिज़ो पर हक जमाने चला हे,विपता के लिए फिर तैयार रहो जो होगा घमासान.कोई चाँद पे ख़रीद रहा हे ज़मी तो कोई,हरियाली को मिटा के बना रहे समशान.प्रकृति से जन जीवन हे उनका जतन करने कि बजाय ,उनको बेरंग कर रहे सीने मे दिल हे या पाषान ।--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------2] अब गोविंद नहीं आएंगे !!️उठालो शस्त्र द्रोपदी अब गोविद नहीं आएंगे,खिंच दो लकीर, क्योंकि अब पूरने चिर गोविंद नहीं आएंगे ।.कब तक यू निशक्त ओर बेबस होती रहोगी,अब किसी न करो अपेक्षा