कनक मृग-पूरनचंद शर्मा -समीक्षा

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कनक मृगखण्ड काव्यपूरन चन्द्र शर्मा समीक्षा- राज बोहरे राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है -राम तुम्हारा नाम स्वयं ही काव्य है,कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है !ऐसी ही विनम्र टिप्पणी समीक्षित खंडकाव्य 'कनक-मृग' के रचयिता कवि पूरन चंद शर्मा ने पुस्तक के आखरी में व्यक्त की है । वे लिखते हैं -राम का नाम जगत कल्याण नेति नेति कहते वेद पुराण हे राघव मैं हूं मति से मंद ।काटिए निज जन के भव फंद। करो निज दासों का कल्याण। दीजिए हो प्रसन्न वरदान ।कवि की यह विनम्रता बहुत दुर्लभतम गुण है जो आज के रचनाकार के पास खोजे