गूंगा गांव - श्याम त्रिपाठी संपादक हिंदी चेतना कैनेडा

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समीक्षा- गूंगा गांव लेखक रामगोपाल भावुक अत्याचारों के विरुद्ध क्रांतिकारी चेतावनी श्याम त्रिपाठी संपादक हिंदी चेतना कैनेडा कुछ अस्वस्थ होने के कारण पत्र व्यवहार और लेखन कार्य को सुचारू रूप से संचालित न कर पाया ।इसके लिए आपसे क्षमा मांगता हूं। आपकी कृति गूंगा गांव देखकर ऐसा प्रतीत हुआ कि जैसे मुंशी प्रेमचंद जी ने फिर पुनः जन्म ले लिया है और वह भावुक जी के नाम से जाने जाते हैं ।कुछ वर्ष हुये जब आपने रत्नावली को जन्म दिया था । इसकी प्रतिया बनवाकर मैंने अनेक मित्रों तक रत्नावली पहुंचाई थी और कई लोगों ने इसके विषय में अपनी