रचना : - माँरचनाकार : - श्रीमती स्नेहल राजन जानी"माँ" ही कितना अजीब शब्द है न? यह शब्द बोलते ही मनको अजीबसी शांति मिलती है। कभी दर्द में तो कभी खुशियों में, कभी अकेलेपन में तो कभी यूंही, माँ याद आ ही जाती है। छोटे बड़े सबके लिए उसकी माँ के इर्दगिर्द ही उसकी दुनिया घूमती रहती है। माँ जिंदा हो तो तो कभी भी उसे याद करने पर सीधा फोन करके बात कर सकते हैं। पर जब माँ यह दुनिया छोड़कर हमेशा के लिए चली जाती है तो याद आते ही आंखे भर आती है। फिर उसे कितना भी