मैं तो ओढ चुनरिया - 45

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45 वह सारी रात मैंने तरह तरह की बातें सोचते हुए जाग कर निकाली । एक अजीब सा अहसास था जो न दुखी होने देता था न खुश । मन में घबराहट अलग हो रही थी । बिल्कुल गुड्डे गुडिया के खेल की तरह लग रहा था । जैसे हम खेला करते थे । मेरी गुडिया है तू कल बारात लेकर आ जाना । घर में पङी मिठाई , नमकीन , कोई पकवान सभी सहेलियां ले आती और हम बाराती घराती कही बैठ कर वे सारा सामान खा लेते और अपने अपने खिलौने लेकर घर चले जाते । बिल्कुल उसी