गुलदस्ता - ४ २० खुले मैदान में जब बिजली चमकी तब होश गवाँकर मैं उसे देखतेही रह गई क्या उसका बाज चापल्य से किया हुआ चकाचोंध शुभ्रता का साज तेज रफ्तार गती की प्रचंड ताकत अनाहत नाद की गुंजती हुई प्रखर वाणी गगन व्यापक मस्ती मालिन्य धो देने का ध्यास क्षणमात्र के दर्शन से वह आत्मस्वरूप तेज देखकर महसुस हुआ यह भी एक सगुण साक्षात्कार है इसी भावावेश में अपना होश गवाकर मैने आँखे बंद कर ली ................................ २१ समंदर की अनंतता में शोर करते हुए किनारे गहिरा नीला पानी सेतू पर सफेद रेत को पुकारे दौडती आती है