मैं तो ओढ चुनरिया - 44

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सारे रास्ते माँ चुपचाप रही । बुलाने पर जितना पूछा जाए , उतना ही जवाब देती । न एक शब्द कम , न एक शब्द ज्यादा । वैसे भी वे कम ही खाती पीती थी घर से बाहर जाकर , केवल बहुत आवश्यक होने पर । पानी भी घूट घूंट ताकि सफर में झज्जर का पानी खत्म न हो जाए पर आज उन्होंने पानी का एक घूंट तक नहीं पीया । सोच में डूबी सीट से सिर टिकाए रही । भाई मेरी गोद में सोया रहा । मेरी पूरी रात जागोमीटी में बीती । कभी झपकी आ जाती , कभी