व्यंग्य- गेंद का खेल, पकड़ का खेल नब्बे के दशक का जमाना था, हम चम्बल में चल रहें साक्षरता अभियान में अपने एक मित्र के साथ बीहड़ बीहड़ और गाँव गाँव या घाट घाट भटक रहें थे कि एक खंडहर में हम भोजन बनाने को रुके। सहसा हमारे साथियों ने खंडहर मकान के किसी आले से मिला एक जीर्ण शीर्ण सा कागज़ हम्मरे हाथ में लाकर रख दिया तो चकित से हो कर हमने बड़ी सावधानी से कागज़ की तह खोली और उस पर लिखी इबारत पढना शुरू किया... वह एक लेख जैसा कुछ था , आइये उस लेख को