मैं तो ओढ चुनरिया - 43

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  मैं तो ओढ चुनरिया    43 इन्हीं व्यस्ताओं में पांच दिन बीत गये । छटे दिन चाचा जी को कुएं से पानी लाकर उबटन मल मल कर नहलाया गया । नये नकोर कपङे पहनाए गये । कंगना बंधा । सेहरा सजा । हाथ में तलवार पकङ कर वे राजा बन गये । घोङी पर बैठ कर वे गलियों में घूमे । आगे आगे बैंड बजता चला । गरीबों की इस बस्ती में ये सब कौतुहल की चीज थी । वे सब अपने घर के दरवाजे पर खङे अचरज से इस जुलूसनुमा बारात को जाते देख रहे थे । बैंड