वो माया है.... - 29

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(29) दीनदयाल और रविप्रकाश दाह संस्कार के दिन शाम को चले गए थे। मनोहर भी अगले दिन सुबह अपने परिवार के साथ चले गए थे। घर में अब केदारनाथ और उनका परिवार ही था। दसवें के बाद जब शुद्धि हो गई तो माहौल कुछ सामान्य हुआ था। उमा की हालत में भी बहुत सुधार आया था। वह दुखी थीं पर इस बात को स्वीकार कर लिया था कि अब जीवन इसी दुख के सहारे काटना है। किशोरी भी दुख को भुलाने की कोशिश कर रही थीं। तांत्रिक ने कहा था कि अब घर में रक्षा कवच की आवश्यकता नहीं है।