हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 56

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अमृत-कणपूज्य भाईजीकी लेखनीने अध्यात्मके प्रत्येक विषयपर विपुल सामग्री प्रदान की है। प्रकाशित पुस्तकोंकी सूची ऊपर दे दी गई है। यहाँ केवल कुछ विषयोंपर उनकी लेखनीसे निसृत कण दिये जा रहे हैं।(१) भक्तियोग -- चित्तवृत्तिका निरन्तर अविच्छिन्न रूपसे अपने इष्ट स्वरूप श्रीभगवान्‌में लगे रहना अथवा भगवान्‌में परम अनुराग या निष्काम अनन्य प्रेम हो जाना ही भक्ति है। भक्तिके अनेक साधन हैं, अनेकों स्तर हैं और अनेकों विभाग हैं। ऋषियोंने बड़ी सुन्दरताके साथ भक्तिकी व्याख्या की है। वस्तुतः भगवान् जैसे भक्तिके वशमें होते हैं, वैसे और किसी साधनसे नहीं होते ....... भगवान् श्रीकृष्णके लिये अनुकूलतायुक्त अनुशीलन होता है उसीका नाम भक्ति है।