मौत पर विजय

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जब भी नंदू को कोयले की खदान से छुट्टी होने के बाद घर आने में देर हो जाती थी, तो उसके दादा जी रामलाल अपनी छड़ी टेक टेक कर कोयले की खदान के पास बने एक चबूतरे पर बैठकर नंदू का इंतजार करते थे।अपने बहू बेटे की मौत के बाद नंदू रामलाल के जीने का इकलौता सहारा था। जब नंदू दो बरस का था, तब गांव में बाढ़ आने के कारण पूरा गांव बर्बाद हो गया था, इस प्रकृति आपदा में बहुत से लोगों की जान चली गई थी, उन लोगों में रामलाल का बेटा बहू भी थे, रामलाल की