बुन्देली कविता घूंघट काये उघारें ! ठाड़ीं भुन्सारे सें द्वारें! रूखे बार कजर बिन अखियां भीतर सें मन मारें! ठाड़ीं भुन्सारे सें द्वारें! कैसीं हो अनमनी तुम्हाई सूरत पै हैरानी , ऐसो लगत हिये की जैसे कौनउ चीज हिरानी! जैसें कौनउ प्यासो पंछी सूखे ताल किनारें ! ठाड़ीं भुन्सारे सें द्वारें! कै तो सास कही कछु तोसें कै रिस भरी जेठानी, कै ननदी ने विष के बोलन तो खों करी दीवानी! कै कछु बातन साजन छेदीं तीखी नैन कटारें। ठाड़ीं भुन्सारे सें द्वारें! कौउ कछु न बात कही है मीत हिरानो मन कौ, निशदिन परत पराई सेजन माली जा