चित्र शास्त्रीय आधारपर "कल्याण" के जो भी चित्र प्रकाशित होते थे उनका आधार हिन्दू शास्त्रोंसे ही खोजा जाता था। कई बार ऐसे अवसर आते थे कि उपर्युक्त आधार खोजनेमें पर्याप्त समय लग जाता था पर जब तक शास्त्रीय आधार नहीं मिलता उसे प्रकाशित नहीं किया जाता था। ऐसे ही एक प्रसंगका वर्णन पं० मंगलजी उद्धवजी शास्त्रीके शब्दोंमें इस तरह हैसन् 1949-50 का समय था, जब श्रीभाईजीके प्रथम दर्शन मुझे हुए। गीतावाटिका मुझे तपौवन-सी प्रतीत हुई। श्रीभाईजीने स्नेहसे गले लगा लिया और मेरा हाथ पकड़कर चारपाईपर बैठा लिया। "कल्याण" के विशेषांक "हिंदू-संस्कृति-अंक" की पूर्व तैयारियाँ हो रही थी। टाइटलके ऊपरवाले चित्रमें