शैलेन्द्र बुधौलिया की कवितायेँ - 5

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प्यार की कहानी (15 ) सुनलो मैं  अपने प्यार की कहता हूँ कहानी! गुजरी जो इश्क-ऐ – दिल पे वो है अपनी जुबानी ! कुछ रोज साथ साथ  गुजारे हंसी-खुशी। पर कुछ दिवस के बाद ही रहने लगा दुखी। यह सोचकर कि अब तो बिछुड़ना जरूर है । फिर जाने कब मिलें  कि गांव बहुत दूर है। अब कौन रोज सुबह से आकर  जगाएगा। अब कौन मुझको प्यार के नगमे सुनाएगा। अब कौन साथ बैठ जूठी  रोटी खाएगा। अब कौन रोज साथ हंसेगा हंसायेगा । मैं तुमको प्यार करता हूँ करता ही जाऊंगा । पर नाम तेरा अपनी जुबां पर