नीलम कुलश्रेष्ठ [ `कथादेश` के सुधा अरोड़ा जी के बेहद लोकप्रिय स्तम्भ `औरत की दुनियां `में प्रकाशित लेख का विस्तार ] मेरी नानी रुक्मणि देवी के पिता कोटा में अपने आस-पास के लड़कों को मुफ़्त पढ़ाया करते थे । कुछ महीनों बाद वे हतप्रभ रह गए, जब एक दिन देखा कि उनकी बेटी शब्द मिलाकर एक किताब पढ़ रही है । उनके पूछने पर नानी बताया - वह दूसरे कमरे से छिप-छिपकर पढ़ना सीखती थीं । बाद में उन्हें बाकायदा शिक्षा दी गई । शादी के बाद भी हमारे नानाजी श्री कामताप्रसाद एडवोकेट ने अलीगढ़ में उनके लिए