मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 41 - अंतिम भाग

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भाग 41आज शाम को पाँच बजे आरिज़ से मिलने का वक्त तय हुआ था। ठीक पाँच बजे चेतना फिज़ा की बीती हुई जिन्दगी से रु-ब-रू हुई। वह उस घर में आई थी जहाँ फिज़ा ने एक बरस गुजारा था। एक बड़े से हॉलनुमा ड्राइंगरुम में उसे बैठाला गया था, जहाँ शानदार नक्काशी का वुडवर्क, कीमती, बड़े और गुदगुदे सोफे, दीवारों पर डिजाइनर पेंट और चमचमाती टाइलों का फर्श, चेतना ने वहाँ की शानोशौकत का अन्दाजा लगा लिया था। उसके साथ ड्राइंगरुम में आरिज़ और उसकी अम्मी बैठे थे। चाँदी सी चमचमाती ट्रे में दो पानी के गिलास के साथ बादाम,