देवर्षि नारद एवं महर्षि अंगिरा के साक्षात् दर्शनइस अलौकिक घटना का विवरण देते हुए भाईजी ने बताया–सन् 1936 में गीतावाटिका (गोरखपुर) में एक वर्ष का अखण्ड-संकीर्तन हुआ था। शिमलापालमें 'नारद भक्ति-सूत्र' पर मैंने एक विस्तृत टीका लिखी थी। वह टीका उन दिनों प्रकाशित हो रही थी। भागवत की कथामें भी नारदजी का प्रसंग सुन रखा था। इन सब हेतुओंसे उन दिनों नारदजी के प्रति मनमें बड़ी भावना पैदा हुई। बार-बार उनके दर्शनों की लालसा जगने लगी।एक दिन रात्रिमें स्वप्नमें दो तेजोमय ब्राह्मण दिखायी दिये। मैं उन्हें पहचान न सका। परिचय पूछने पर उन्होंने बताया कि हम दोनों नारद और अंगिरा