अकेली - भाग 5

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आज ज़िंदगी में पहली बार गंगा अकेली कचरा बीन रही थी। उसकी आँखों से आँसू गिर कर उस कचरे में मिलते जा रहे थे भले ही शालू और मोहन बेहद गरीब थे फिर भी गंगा के लिए उनके सपने बड़े थे। थैला भर कर कचरा बीनने के बाद गंगा उसे अपने कंधे पर टांगे चल रही थी। उसे अपनी माँ की कही बातें याद आ रही थीं। "गंगा मैं तुझे कचरा बीनने के काम में कभी नहीं लगाऊँगी। तेरी शादी भी ऐसे लड़के से करूंगी जो तुझे अच्छे से रखेगा और वह भी कचरा बीनने का काम नहीं करता होगा।"