चोरी और प्रायश्चित

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चोरी और प्रायश्चित गांधी जी की आत्मकथा का एक बेहद महत्वपूर्ण अंश है -गांधीजी अपने चाचा जी को बीड़ी पीते एवं बीड़ी से धुआं उड़ाते देखते थे ।उन्हें भी बीड़ी से धुआं उड़ाने की इच्छा हुई ,गांधी जी एवं उनके भाई को बीड़ी पीने में कोई लाभ या उससे कोई आनंद तो नहीं आता था परंतु उन्हें ऐसा करने में मजा आने लगा। बीड़ी पीने के लिए उनके पास पैसे नहीं होने के कारण वे चाचा जी द्वारा फेंके गए बीड़ी के टुकड़े को चुराकर धुआं उड़ाने लगे ,परंतु हर समय बीड़ी के टुकड़े में नहीं मिलते थे और ना