शैलेन्द्र बुधौलिया की कवितायेँ - 3

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।।।आत्मबोध।।।         (11)   मैं समय के पूर्व कुछ कहने लगा था । अपनी धारा में स्वयं बहने लगा था ।।   भावना का वेग था  उलझा हुआ । कुछ नहीं था स्वयं में सुलझा हुआ ।।   एक अलग संसार था सपनीला सा । एक अलग अंदाज था गर्वीला सा ।।   भ्रम नहीं था कुछ भी सब आसान था । मैं स्वयं से सत्य से अंजान था ।।   आज जब बातावरण कुछ शांत था । कोलाहल से दूर था एकांत था ।।   कलम लेकर हाथ में कुछ गढ़ रहा था । एक अन्तर्द्वन्द मुझ में बड़ रहा