।।।आत्मबोध।।। (11) मैं समय के पूर्व कुछ कहने लगा था । अपनी धारा में स्वयं बहने लगा था ।। भावना का वेग था उलझा हुआ । कुछ नहीं था स्वयं में सुलझा हुआ ।। एक अलग संसार था सपनीला सा । एक अलग अंदाज था गर्वीला सा ।। भ्रम नहीं था कुछ भी सब आसान था । मैं स्वयं से सत्य से अंजान था ।। आज जब बातावरण कुछ शांत था । कोलाहल से दूर था एकांत था ।। कलम लेकर हाथ में कुछ गढ़ रहा था । एक अन्तर्द्वन्द मुझ में बड़ रहा