शैलेन्द्र बुधौलिया की कवितायेँ - 1

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।।।  एकांत ।।।     (1)                      ..................   सब ने देखा फूल सा खिलता सदा जिसका बदन । कोई क्या जाने कि वह कैसे जिया एकांत में ।।   जिन लवों की बात सुन सब खिलखिलाते मस्त हो। बुदबुदाते हैं वही लव बैठकर एकांत में ।।   लोग ऐसे भी जिन्होंने जन्म से ही जुल्म ढाए। वह भी रोते हैं कभी कुछ सोचकर एकांत में ।।   एक घर है जिसको वह मंदिर समझता था कभी। आज उसके द्वार तक जाता है पर एकांत में ।।   मद भरे मादक नयन मदिरा पिला मदहोश करते। खुद बुझाते प्यास अपनी अश्रु