मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 39

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भाग 39इस बार दोनों ही ठहाका लगा कर हँस दी थी। फिज़ा की अम्मी कभी चेतना तो कभी फिज़ा की बात को अपनी रजामंदी की मोहर लगा रही थीं। वहाँ का माहौल बड़ा ही खुशगवार था। जरा भी नही लग रहा था कि वो दोनों एक गंभीर मुद्दे पर बात कर रहीं थीं। लगभग एक घण्टें से ऊपर हो चुका था। चेतना ने अपनी कहानी का खाका खींच लिया था। अभी कुछ सवाल और बाकी थे। शायद बीच में एक ब्रेक जरुरी था। चाय एक बार फिर से आ गयी थी। चेतना अपनी कहानी के हर किरदार के साथ आदिल