अनुबोधपंचशिका

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प्रणेता डॉ.उमाकान्त शुक्ल: आद्यसम्पादक: पद्म श्री –डॉ. रमाकान्त शुक्ल: मनुष्य के जीवन में विभिन्न मौसम आते हैं बाल्यावस्था से किशोरावस्था फिर यौवनावस्था उसके बाद क्रमश: जीवन के झरोखे खुलते,बंद होते ही रहते हैं हर मौसम की भिन्न रवानी है तो भिन्न कहानी है कभी पवन के वेग से पल्लवित झरोखे से सुगंधित वायु की बयार है जो कभी प्राणवायु बनकर उसकी श्वासों के साथ लहराकर चलती है तो कभी जीवन-तरंगों से उठती हुई ऐसी अद्भुत कहानी कहती है कि उसकी गति जीवंत कर देती है, कभी निराशा की आँधी भी मन के आँगन में