चेत:पँचाशिका

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================== माँ वीणापाणि को नमन करते हुए सर्वप्रथम आ.गुरुदेव डॉ. उमाकांत जी शुक्ल को ह्रदय से प्रणाम करती हूँ | यह आदरणीय डॉ.शुक्ल का मेरे प्रति अतिरिक्त स्नेह व आशीष ही है कि इतनी दूर गुजरात में बैठी हुई मुझे अपने ज्ञान से सिंचित कराने हेतु मुझ तक अपनी चार पुस्तिकाओं को पहुंचाने का कष्ट किया | जैसा मैं बहुधा कहती हूँ, अपने हर साक्षात्कार में भी मन से स्वीकार करती भी हूँ कि मेरी गिनती तो कभी उच्च स्तरीय छात्रों में रही ही नहीं | हाँ, शैतान छात्रों में अवश्य मुझे उच्च आसन पर आसीन किया जा सकता है|