भीतर का जादू - 3

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सपनों के दायरे में मेरा एक बार फिर उससे सामना हुआ। सफ़ेद रंग में लिपटा हुआ, उसका चेहरा अंधेरे में डूबा हुआ था, या शायद पूरी तरह से चेहरे से रहित था, फिर भी उसकी भेदी आँखें मेरी आत्मा चिर गईं। उसकी उपस्थिति के ये डरावने सपने मेरे लिए ने नहीं थे। जब वह अपने सिंहासन पर बैठा होता था, तो मैं अक्सर खुद को उसकी हताशा का गवाह बनता था, एक गहरी लालसा से ग्रस्त। और फिर, अचानक, उसकी पीड़ा भरी चीख से मेरी नींद खुल गई, जो मेरे दिमाग के अलौकिक गलियारों में गूँज रही थी। "कहां हो