यूँ तो हम भगवान की भक्ति करते हैं, लेकिन असल में भगवान को नौकर समझते हैं। भगवान हमें ये दे दो, हमारे लिए ऐसा कर दो। भगवान को धन्यवाद तो कभी देते ही नहीं, जबकि भक्ति का संबन्ध माँगने से नहीं, धन्यवाद करने से है। हमें जैसा जीवन मिला, क्या हम इसके योग्य हैं? क्या जो कुछ हमने पाया है, वह हमारी योग्यता की अपेक्षा किसी परम सत्ता की कृपादृष्टि नहीं? कोई भी धन्यवाद नहीं देता कि हे भगवान तेरी कृपा से हम इस हालत में हैं, वरना इससे बुरी हालत में भी हो सकते थे। हम अंधे, लूले, लँगड़े