पथ से गन्तव्य तक

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मेरी सेवानिवृत्ति में अब मात्र एक वर्ष ही तो शेष रह गये हैं। जीवन के विगत् सत्ताइस वर्ष ऐसे व्यतीत हो गये जैसे सत्ताइस दिन। कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है जैसे अभी कल ही नौकरी ज्वाइन की हो। सत्ताइस वर्ष जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। सत्ताइस वर्ष सत्ताइस दिन नही हो सकते। फिर भी विगत् सत्ताइस वर्षों का हवा के पंखों पर सवार होकर उड़ जाना आज न जाने क्यों मुझे हल्की-सी पीड़ा पहुँचा रहे हैं। जब भी मैं कभी अकेला बैठता हूँ तो सोचने लगता हूँ कि क्या मेरी उम्र साठ वर्ष की हो गयी है? मेरा