मजबूरियाँ

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"मजबूरियाँ क्या कुछ नहीं करवाती हैं,साहब ! खेलने की उम्र में खिलौने भी छीन लेती हैं, साहब ! " यह कहानी उन गरीब बच्चों की है, जो बचपन में खेलने की बजाय मज़दूरी करते नज़र आते हैं । एक दिन की बात है । जब मैं रास्ते से गुज़र रही थी, उसी रास्ते में मुझे एक छोटी-सी बच्ची और उसका छोटा-सा , मासूम भाई तीन पहियेवाली साइकिल चलाते हुए दिखे । बच्ची साइकिल चलाती थी और उसका भाई पीछे बैठा था । वो दोनों भाई- बहन कचरा इकट्ठा कर रहे थे । जैसे ही में उन दोनों की नज़दीक गई,