दुर्गी

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उसके हाथ-पैर काँप रहे थे। हाथ-पैर ही नही, पूरा शरीर काँप रहा था...... । स्वर तीव्र होते-होते गले में रूँध गये थे। तेज बोलना उसका स्वभाव नही था। आज सहसा चिल्लाने से उसका गला रूंध गया। वह इतनी दुर्बल कभी नही थी कि यह घटना उसके मन मस्तिष्क पर इतना दुष्प्रभाव डाल सके। वह तो साहसी थी। विवाह के समय जब वह बल्यावस्था में थी, तब बहुत डरती थी। पिता व भाई के अतिरिक्त किसी भी परपुरूष से उसे भय लगता था। उसे स्मरण हैं अब भी, बचपन के वे दिन जब वह गाँव के सरकारी प्राथमिक विद्यालय में पढ़ती