रेहाना संदेश अपने कार्यालय में बैठा कुछ विचारमग्न था कि अचानक ही रेहाना ने आकर दरवाजा खटखटाया। दरवाजे पर दस्तक से संदेश का ध्यान टूटा और दरवाजे की तरफ देखा। रेहाना खड़ी थी। आँखे एकदम सुर्ख, अंगारे सी, लग रहा था कि वो अभी खूब रोकर आई है। चेहरे के भाव भी बता रहे थे कि भीतर लावा सा कुलबुला रहा है। वो चुपचार अन्द आ गई और ठीक सामने वाली कुर्सी में लगभग गिर पड़ी। रेहाना से संदेश का कोई पुराना परिचय नहीं था। बस आठ-दस हफ्ते पहले युं ही मुलाकात हुई और रेहाना उसके कार्यालय में आने लगी