कुछ भी न कहो

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शाम गहराने लगी थी। वह दुपट्टे से सिर को ढ़के हुए तीव्र गति से अपने कदम बढ़ा रही थी। शाम ढलती जा रही है, इसलिए वह शीघ्र घर पहुँचना चाह रही है। घर पहुँच कर दरवाजे की घंटी बजाते कर वह दरवाजा खुलने की प्रतीक्षा करने लगी। वह जानती है कि प्रतिदिन की भाँति आज भी दरवाजा नाज़िया खोलेगी। दरवाजा नाज़िया ने ही खोला। ’’ आज देर कैसे हो गयी अप्पी? ’’ दरवाजा खोलते ही नाजिया ने आतुरता से पूछा। उसके चेहरे पर चिन्ता की रेखायें स्पष्ट थीं। नाजिया की उम्र यद्यपि दस-ग्यारह वर्ष की ही है। किन्तु समझदारी उसके