दीवार की आंख

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अमन कुमार त्यागी ‘‘कौन मानेगा इस बात को कि दीवार की भी आंख होती है?’’ कमल सवाल करता है और फिर स्वयं ही जवाब भी देता है -‘‘जब दीवार के कान हो सकते हैं तो आंख क्यों नहीं हो सकती।’’मगर हम कमल की बात मानने को तैयार नहीं थे। उसे अपनी बात समझाने का तरीका नहीं आ रहा था। वह तो बस जिद्द पर अड़ा था कि ‘दीवार की भी आंख होती हैं’। कमल बता रहा था- ‘‘मैं जिन दीवरों में आंखें होने की बात कर रहा हूं, उन्हें मैंने बेबसी के साथ निहारते हुए देखा है। मैं गवाह हूं