एक टुकड़ा सुख

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अमन कुमार त्यागी  आज एक ऐसे व्यक्ति की कहानी कहता हूँ जिसके पास धन का अभाव था मगर उसने अपने आपको कभी ग़रीब नहीं माना। उसकी पत्नी बीमार थी, बेटी बीमार थी, बेटा बीमार था यहाँ तक कि वह स्वयं इतना बीमार था कि दुनिया की किसी भी बात में उसका मन नहीं लगता था। प्रोपर इलाज नहीं हो पा रहा था परंतु वह बीमारियों और धनाभाव के कारण मरना भी नहीं चाहता था। कुछ भी कहिए, इस सब के बावजूद वह दुःखी नहीं था। जहाँ कहीं से उसे एक टुकड़ा ख़ुशी मिलती, वह उसी को ढंग से जी लेता।