अग्निजा - 150

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लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-150 सुबह साढे नौ के आसपास केतकी अखबार पढ़ रही थी, उसी समय एक बार फिर वही अननोन नंबर से फोन बजने लगा। केतकी ने फोन उठाया, पर वह कुछ बोली नहीं। सामने से एक गंभीर आवाज सुनाई दी, ‘नाराज हो गयी माई लव...आई वॉन्ट टू मीट यू...कब मिलोगी?’ केतकी ने गुस्से में जवाब दिया, ‘मैं ऐसे अनजान और डरपोक लोगों से नहीं मिलती।’ ‘अनजान?, अरे मैं तो सुबह-शाम तुम्हारे साथ रहता हूं। तुम मेरे खयालों से जाती कहां हो...एक बार मिलो तो सही...सब गिले-शिकवे दूर हो जाएंगे। आज शाम को? जब भी मिलो तो चार-पांच घंटे