जीवन सूत्र 554 किसी तीसरे पर न निकालें अपना क्रोधभगवान श्री कृष्ण ने गीता के 16 वें अध्याय में दैवी संपदा को लेकर उत्पन्न हुए मनुष्य के लक्षण बताते हुए कहा है:- अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्।दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्।(16/2)।इसका अर्थ है- मन वाणी और शरीर से किसी भी प्रकार से किसी को कष्ट न देना, यथार्थ और प्रिय भाषण( अर्थात अंतःकरण और इंद्रियों के द्वारा जैसा निश्चय किया गया है,वैसा ही प्रिय शब्दों में कहने का नाम सत्य भाषण है।) अपना अपकार करने वाले पर भी क्रोध का न होना, कर्मों में कर्तापन के अभिमान का त्याग,अंतःकरण की उपरति अर्थात चित्त