गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 171

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जीवन सूत्र 526 "मुझे ये चाहिए और वो भी चाहिए"यह विचार गलतसमः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः।शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्गविवर्जितः।(12/18)।तुल्यनिन्दास्तुतिर्मौनी सन्तुष्टो येनकेनचित्।अनिकेतः स्थिरमतिहःभक्तिमान्मे प्रियो नरः।(12/19)।जो पुरुष शत्रु और मित्र में तथा मान और अपमान में सम है; जो शीत-उष्ण व सुख दु:ख आदि द्वन्द्वों में सम है।जिसमें आसक्ति नहीं है।जिसको निन्दा और स्तुति दोनों ही तुल्य है,जो मौन रहता है,जो थोड़ी चीज से भी सन्तुष्ट है,जो अनिकेत है,वह स्थिर बुद्धि का भक्त मुझे प्रिय है। हम जीवन भर सुख सुविधाओं और आराम के साधनों के निरंतर संग्रह व विस्तार के कार्य में लगे होते हैं।जीवन सूत्र 527 आत्ममुग्धता से बचेंअपने