जीवन सूत्र 506 छूटना कर्म के मोह बंधनों सेभगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है:-शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनैः।संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि।(9/28)।भगवान श्री कृष्ण कहते हैं - इस प्रकार जिसमें समस्त कर्म मुझ भगवान के अर्पण होते हैं- ऐसे संन्यास योग से युक्त चित्त वाला तू शुभ अशुभ फल रूप कर्म बंधन से मुक्त हो जाएगा और उनसे मुक्त होकर मुझको ही प्राप्त होगा।जीवन सूत्र 507 समस्त कर्म ईश्वर अर्पित करेंवास्तव में संन्यास का वास्तविक अर्थ कर्मों में कर्तापन के अभाव और फलों में आसक्ति के अभाव से होना चाहिए। ऐसा करना सहज नहीं है इसलिए हमें अपने सभी कर्मों को ईश्वर