जीवन सूत्र 416 योगी के लिए आवश्यक है संकल्पों का त्यागगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है-यं संन्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पाण्डव।न ह्यसंन्यस्तसङ्कल्पो योगी भवति कश्चन।(6/2)।इसका अर्थ है-हे अर्जुन ! लोग जिसको संन्यास कहते हैं,उसी को तुम योग समझो;क्योंकि किसी भी योग की सफलता के लिए संकल्पों का त्याग आवश्यक है।ऐसा किए बिना मनुष्य किसी भी प्रकार का योगी नहीं हो सकता है। कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में दिया गया गीता का उपदेश जीवन की विविध समस्याओं में और स्थितियों में मार्गदर्शक है। मेरी दृष्टि में यह यह जीवन प्रबंधन पर लिखा गया सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है।संन्यास (सांख्ययोग) और योग