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अमन कुमार त्यागी   अब तो हद हो गई है। बर्दाश्त की भी कोई सीमा होती है? बात सभी सीमाओं को लांघ चुकी है। पानी सिर से ऊपर नहीं बल्कि बांध के ऊपर से बहने लगा है। जिन्हें संभलना था वो तूफ़ान से पहले की शांति के साथ ही संभल गए जो नहीं संभले वो अब तूफ़ान से लड़ रहे हैं। मतलब साफ़ है, मजबूत लोग घरों में सुरक्षित हो गए और तूफ़ान के जाने का इंतजर देख रहे हैं जबकि कमज़ोर लोग तूफ़ान से जूझ रहे हैं और मजबूत लोगों से मदद की गुहार लगा रहे हैं। मगर मजबूत