गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 128

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जीवन सूत्र 331 कर्म का उद्देश्य आत्म शुद्धि भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है: -कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि।योगिनः कर्म कुर्वन्ति सङ्गं त्यक्त्वात्मशुद्धये।।5/11।।इसका अर्थ है, हे अर्जुन!कर्मयोगी शरीर,मन, बुद्धि और इंद्रियों के द्वारा आसक्ति को त्याग कर आत्मशुद्धि (चित्त की निर्मलता) के लिए कर्म करते हैं। मनुष्य प्रातः नींद से जागने के बाद से रात्रि में दोबारा निद्रा के अधीन होने तक निरंतर कर्मरत रहता है।वह एक क्षण के लिए भी बिना कर्म किए नहीं रह सकता है।उसका श्वास लेना भी कर्म है। चलना कर्म है। उठना कर्म है। बैठना कर्म है और विश्राम करना भी कर्म है।कर्मों का