गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 127

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जीवन सूत्र 326 संसार में रहकर भी बुराइयों से रहे अप्रभावित गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने वीर अर्जुन से कहा है:-ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः।लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा।।5/10।। इसका अर्थ है,"हे अर्जुन!जो सब कर्मों को ईश्वर में अर्पण करके और आसक्ति को त्यागकर कर्म करता है,वह व्यक्ति कमल के पत्ते की तरह जल में रहकर भी उससे लिप्त नहीं होता,वैसे ही मनुष्य पापोंसे लिप्त नहीं होता।" इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने संसार में रहते हुए भी संसार की बुराइयों से लिप्त नहीं होने के लिए कमल के पत्ते का उदाहरण दिया है।मनुष्य को संसार में रहकर ही