गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 102

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जीवन सूत्र 211 मोह का बंधन अदृश्य लेकिन मजबूत होता है गीता में भगवान श्री कृष्ण ने वीर अर्जुन से कहा है:-गतसङ्गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः।यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते।।4/23।। इसका अर्थ है,जिसने आसक्ति को त्याग दिया है,जो मोह से मुक्त है,जिसका चित्त ज्ञान में स्थित है,यज्ञ के उद्देश्य से कर्म करने वाले ऐसे मनुष्य के कर्म समस्त विपरीत प्रभावों से मुक्त रहते हैं। कर्मों के सटीक होने, विपरीत प्रभावों से मुक्त रहने और सात्विक होने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने आसक्ति के त्याग की बात कही है। मोह के अदृश्य लेकिन मजबूत बंधन से मुक्त रहने की बात कही है।जीवन सूत्र