सितारों के बीच चमक रहे चाँद को निहारते और मन में अमर की तस्वीर बसाए रजनी कब निंदिया रानी के आगोश में समा गई वह जान ही नहीं पाई।सुबह जब उसकी नींद खुली बिरजू की माँ चूल्हे पर चाय पका रही थी। आँखें मसलते हुए उनींदी आँखों से उसने देखा, बिरजू की माँ एक बड़े से मुरादाबादी लोटे में चाय छान रही थी। लोटा चाय से लबालब भर गया। एक हाथ में चाय का लोटा और दूसरे हाथ में रात की बासी रोटी थामे वह बाहर निकल गई।रजनी हाथमुँह धोकर जब बाहर निकली, खटिये पर बैठे चौधरी रामलाल और बिरजू