अनाहिता

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गाँव बेचकर शहर खरीदा, कीमत बड़ी चुकाई है।जीवन के उल्लास बेच के, खरीदी हमने तन्हाई है।। बेचा है ईमान धरम तब, घर में शानो शौकत आई है।संतोष बेच तृष्णा खरीदी, देखो कितनी मंहगाई है।। बीघा बेच स्कवायर फीट, खरीदा ये कैसी सौदाई है। संयुक्त परिवार के वट वृक्ष से, टूटी ये पीढ़ी मुरझाई है।। रिश्तों में है भरी चालाकी, हर बात में दिखती चतुराई है। कहीं गुम हो गई मिठास, जीवन से कड़वाहट सी भर आई है।। रस्सी की बुनी खाट बेच दी, मैट्रेस ने वहां जगह बनाई है। अचार, मुरब्बे आज अधिकतर, शो केस में सजी दवाई है।। माटी