अमन कुमार त्यागी रामलाल की बेचैनी थमने का नाम नहीं ले रही थी। वह बहुत अधिक परेशान थे। रात्रि का मध्यकाल था और आँखों से नींद गायब थी। हाथ-पाँव काँप रहे थे। पूरा बदन पसीने से तर बतर था। फिर अचानक उन्हें सारा कमरा घूमता नजर आने लगा खिड़की दरवाज़े सब उनके चारों ओर किसी सौरमंडल के ग्रहों की तरह चक्कर लगा रहे थे। दीवार पर हाथ टिकाए वह अपने आपको भी हवा में घूमता हुआ अनुभव कर रहे थे। चंद सेकंड में ही उनकी आँखों में अँधेरा छाने लगा, तेज रोशनी के बावजूद उन्हें कुछ भी दिखाई देना