मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 7

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भाग 7नुसरत फूफी की वैसे तो किसी से भी कम ही पटती थी मगर नूरी फूफी के अहज़ान के अस्बास से वह भी परेशान रहने लगी थीं। कुछ कहानियाँ नुसरत फूफी ने भी हमें सुनाईं थी, मगर उनकी कहानियों में हमें उतना मजा नही आता था जितना नूरी फूफी जान की कहानियों में आता था। कभी-कभी हमें लगता था जब हम और नूरी फूफीजान लिहाफ मुँह से ढ़क कर बातें करते थे तो नुसरत फूफी को अकेलापन महसूस होता था और वह थोड़ी अफ़सुर्दा हो जाती तो हमें खुशी होती थी। हम उन्हें और चिढ़ाते थे। उस वक्त हमारी सोच